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दौलत कवि

रीतिकाल के अलक्षित कवि।

रीतिकाल के अलक्षित कवि।

दौलत कवि की संपूर्ण रचनाएँ

दोहा 53

ससि सौं अति सुंदर मुष, अंग सुंदर जान।

प्रीतम रहे बस भयौ, ऐसो प्रेम प्रधान॥

अंग मोतिन के आभरन, सारी पहिरैं स्वेत।

चली चाँदनी रैन में, प्रिया प्रानपति हेत॥

प्रीतम आगम सुनत तिय, हिय मैं अति हुलसात।

आनंद के अँसुवा नयन, मुकता सुरत दिवात॥

लाज तजी जिहि काज जग, बैरि कियौ मुख हेरि।

तो पिय सौं हित मूढ़ मैं, तोरत करी बेरि॥

रचत रहैं भूषन बसन, मो मुख लखै सुहाय।

ज्यौं-ज्यौं सब कै बस भये, त्यौं-त्यौं रहौं लजाय॥

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