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तू गगन मंडल धुनि लाव रे

tuu gagan ma.nDal dhuni laav re

संत जगजीवन

अन्य

अन्य

संत जगजीवन

तू गगन मंडल धुनि लाव रे

संत जगजीवन

तू गगन मंडल धुनि लाव रे॥

सुरति साधि के पवन चढ़ावहु, सकल सबै बिसराव रे।

थिर व्है रहि ठहराय देखु छबि, नयन दरस रस पाव रे॥

सो तुम होहु मस्त लै मनुआँ, बहुरि एहि जग आव रे।

जगजीवनदास अमर डरपहु नहिं, गुरु के चरन चित लाव रे॥

स्रोत :
  • पुस्तक : जगजीवन साहब की बानी, दूसरा भाग (पृष्ठ 34)
  • रचनाकार : जगजीवन साहब
  • प्रकाशन : बेलवेडरी स्टीम प्रिंटिंग वर्क्स, इलाहाबाद
  • संस्करण : 1909

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