Font by Mehr Nastaliq Web

प्यास से मरती एक नदी

pyaas se marti ek nadi

महमूद दरवेश

अन्य

अन्य

महमूद दरवेश

प्यास से मरती एक नदी

महमूद दरवेश

और अधिकमहमूद दरवेश

    यहाँ एक नदी थी और उसके दो किनारे थे

    और एक आसमानी माँ

    जिसने बादलों से टपकते क़तरों से इसकी परवरिश की

    एक नन्हीं नदी

    अहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती हुई

    पहाड़ की चोटियों से उतरती हुई

    गाँवों और खेमों को

    किसी ख़ूबसूरत-ज़िंदादिल मेहमान के मानिंद

    निहाल करती हुई

    घाटी को कड़ैंल और खजूर के दरख़्त बख़्शती हुई

    और साहिलों पर

    रात की मौज़मस्ती में डूबे हुओं से

    अठखेलियाँ करती हुई,

    'पियो बादलों का शीर

    पिलाओ घोड़ों को पानी

    और उड़ जाओ येरूशेलम, दमिश्क।'

    कभी अगलों से मुख़ातिब

    बहादुराना लहजे में गाती लहक-लहक।

    यहाँ दो किनारों वाली एक नदी थी

    और एक आसमानी माँ

    जिसने बादलों से टपकते क़तरों से इसकी परवरिश की

    मगर उन्होंने इसकी माँ का अपहरण कर लिया

    लिहाज़ा, पानी की कमी से

    प्यास से छटपटाते

    दम तोड़ दी इसने

    आहिस्ता आहिस्ता।...

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 324)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक सुरेश सलिल, कैथराइन कोहैम
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए