बेलूर की श्यामल साँझ में

belur ki shyamal sanjh mein

ज्याेति शोभा

ज्याेति शोभा

बेलूर की श्यामल साँझ में

ज्याेति शोभा

बेलूर की श्यामल साँझ में

एक सराय ही है हमारी नींद

तुम भी ठहरते हो

मैं भी ठहरती हूँ

बिल्कुल पास-पास वाले कमरों में

जैसे कविता लिखते एक हाथ के पास ठहरता है एक दूसरा संकोची हाथ

नींद में ही बनते हैं घर

नींद में गिरते हैं छप्पर

नींद में आते हैं मेघ

ढक लेते हैं पतझड़ से नग्न कलकत्ता को

छज्जे के नीचे बजता रविंद्र-गान फीका पड़ जाता है

चले जाते हैं ढाकी अपने देस

जैसे चली गई देवी के पीछे उग आता है

एक भूला क्लेश

नींद में आए कठोर शीत का जल

म्लान मुख पर लपलपाता है

फूले काठ की तरह

अधिकतर संकेत से भरी भाषा नहीं खुलती नींद में

तुम कहते हो

इस जगत में सराय ही सबसे उपयुक्त जगह है—

संवाद के लिए

नींद में उठकर ही मैं आती हूँ अपने हृदय के पीछे

अपनी देह लिए।

स्रोत :
  • रचनाकार : ज्योति शोभा
  • प्रकाशन : समालोचन

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