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आत्मदया का क्षण

atmadya ka kshan

कैलाश वाजपेयी

अन्य

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कैलाश वाजपेयी

आत्मदया का क्षण

कैलाश वाजपेयी

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    शहर रहते हुए

    मैं मर जाऊँगा

    दिन गिन रही होगी बीसवीं शताब्दी

    प्राविडेंट फंड

    परिवार

    कोई नहीं आएगा बचाने

    बचना भी कहाँ चाहूँगा

    शहर रहेगा मैं मर जाऊँगा

    लोग : जिन्हें लगता हूँ शत्रु

    कुछ तब भी होंगे

    मूर्ख अनुभव करते हुए

    कुछ सगे मेरे

    नाटक करेंगे दु:ख का

    ढँक कर कहेंगे मेरी कमज़ोरियाँ

    मैं भी था भला आदमी!

    आज के मेरे विक्षोभ

    हो चुके होंगे तब शिलाभूत

    आहत हो चुकी होंगी पीढ़ियाँ

    सभ्यता चढ़ गई होगी

    और कई सीढ़ियाँ

    जबकि मैं लपटों में

    पता नहीं किसकी तरह खो जाऊँगा!

    मेरे शरीर पर कहीं नहीं लिखा मेरा नाम

    फिर भी अँधेरा,

    मेरी कविताओं का

    कौंधेगा मेरे आस-पास

    कोई नहीं होगा उदास

    प्रतिबद्धता विद्रोह प्यार मूर्खता

    सबके होते हुए मैं बिखर जाऊँगा

    शहर फिर भी होगा

    मैं मर जाऊँगा!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : कैलाश वाजपेयी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1988

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